अविभाज्य भारत के पंजाब प्रान्त के मुल्तान शहर के परम विद्वान भारतीय पंचनद विद्वतपरिषद के महामंत्री आचार्य श्री कमलनयन जी के सुपुत्र के रूप में पंडित श्रवणकुमार शास्त्री का जन्म सम्बत १९८३ सन १९२७ को माघ मास की सकट चतुर्थी को हुआ था.
आपश्री का विवाह मुल्तान शहर के रेलवे की प्रथम श्रेणी के गॉर्ड के रूप में सेवारत परम आदरणीय श्री बिहारीलाल जी रंगा की द्वितीय पुत्री श्रीमती पुष्पवती से हुआ, आपश्री की पत्नी अत्यंत सुलक्षणी आध्यात्मिक और समस्त कार्यों मैं निपूर्ण थीं.
आपने लाहौर के सुप्रसिद्ध संस्कृत महाविद्यालय मैं शास्त्री की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्रीर्ण की। आपने अपने पिता प्रातः स्मरणीय पूज्य श्री कमलनयन जी के सानिंध्य मैं छोटी उम्र में ज्योतिष में महारत हासिल कर ली थी. आपने अपने मामाश्री एवं ससुरश्री पंडित श्री बिहारीलाल जी रंगा से आयुर्वेद की उच्च शिक्षा प्राप्त की. आपने अपना जीवन सर्वजन हिताय से संकल्पित किया. आप सरल शांत एवं सौम्य व्यक्तित्व के धनी एवं उत्कर्ष संत थे. आप निर्विकार निराकरण एवं निसंग थे। विद्वता ज्ञान ध्यान तपस्या आपकी नित्य दिनचर्या थी. आपकी मनोहर मुखमुद्रा एवं मधुर प्रवचन कला का चुम्बकीय प्रभाव था.
आपके चेहरे से ज्ञान का तेज टपकता था तथा वाणी से अध्यात्म रस की गंगा बहती थी…आप मौन रह कर भी मुखर थे..आप मुनि रूप थे और आपकी मनन चिंतन की प्रकृति थी. तत्व ज्ञान के मनन चिंतन में समय व्यतीत करते थे. आत्ममंथन से जो मोती निकलते थे उन्हें वो अपने पास न रख कर गुणी जनो मैं बाँट देते थे.
देश के विभाजन के समय अपने परिवार के साथ घोर संघर्ष करते हुए अंत में आगरा को प्रवास निश्चित किया और अवैतनिक “नागरी प्रचारिणी सभा” में अध्यापन कार्य किया तत्पश्चात एम डी जैन इंटर कॉलेज में संस्कृत के लेक्चरर नियुक्त हुए. आपने अपने अनुनायियों के निरंतर आग्रह पर कॉलेज से इस्तीफा दे कर जनहितार्थ कल्याण कार्य (समाज सेवा) व ज्योतिष पर गहन अध्यन किया
और अपने अनुज भ्राता एवं प्रचंड प्रकांड संस्कृत मनीषी श्री आचार्य मुरली मनोहर जी शास्त्री के साथ रूद्र नगर के कई विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ कर के अपनी विद्वता का लोहा मनवाने में सफल रहे और विनर्म शांत और शालीन व्यक्तित्व का परिचय देते रहे. दोनों भाईयों ने सामाजिक चेतना जगाने के कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक कार्य किये, कुरीतियों ढोंग पाखंड का घोर विरोध करते रहे आगरा में ही सामाजिक कार्यों के लिए श्री मुल्तान सेवा समिति का गठन किया, इस प्रकार आप ने आगरा और आस पास के विशाल जनमानस को आंदोलित कर प्रभु प्रेरणा की और प्रेरित करने में सफल हुए. बंधुओं को अकुलित जीवन मैं स्तिरथा प्रदान की एवं दीन हीन लोगों को दिशा दी.
आगरा में दोनों भाई राम-लक्ष्मण की जोड़ी के नाम से विख्यात थे. दोनों ने आगरा में ही “कमलनयन ज्योतिष कार्यालय” के नाम से ज्योतिष संसथान खोला जहाँ जरुरतमंदो को निशुल्क सेवा दी जाती थी. आज भी उनके सुपुत्र श्री आचार्य नवल भरद्वाज उन्ही के सिखाये कार्य को समाज सेवार्थ कर रहे हैं.
आप किसी अन्य से नहीं स्वयं से स्पर्धा करते थे इसलिए आपने अपने आप को ही अपना शिष्य बना लिया और छात्र की भांति एक एक मंजिल तय की, भाषा भाषण और शैली के अनेक प्रयोग और तपस्या की और एक दिन वह आ गया की आपकी वाणी साक्षात् सरस्वती बन गयी आप के मुखारविंद से जो भी वक्तव्य निकलता था वो पत्थर की लकीर की तरह अकाट्य होता था. आपकी शैली का निजी माधुर्य आम हो या खास हो सभी को माधुर्य मोहित करता था. आपकी साधना आपकी ज्ञान की गहराई से ही आपने सफल मंज़िल को प्राप्त किया.
आगरा में कई सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं से आजीवन जुड़े रहे. श्री मुल्तान सेवा समिति, बहावलपुर सत्संग संस्था, पुष्टिकर सम्प्रदाय की श्रीनाथ जी की प्रथम बैठक का जीर्णोद्धार करवाया और कई विशाल स्तर पर उत्सव मनोरथ कराये, स्थानीय व्यक्तियों एकत्र एवं संगठित कर पुष्टिकर संप्रदाय की तरफ प्रेरित किया.
कई गोंसाई बालको और महाराजश्री के कृपा पात्र बने रहे और अपने घर “कमल-कुटीर” जो किसी आश्रम की भांति था मैं कई बार महाराजश्री की पधरावनी का सुखद संयोग प्राप्त हुआ. आप श्रीनाथ जी के सच्चे सेवक और परम वैष्णव थे,
दुर्भाग्य से अल्पायु में मात्र ४६ वर्ष कलेवर त्याग कर श्री चरणों मैं विलीन हो गया.. आप के गोलोकगमन से पूरे समाज में एक बहुत बड़ा रिक्त स्थान उत्पन्न हो गया.
प्रस्तुत कर्ता : कमल एवं नवल आचार्य
आदरनीय प्रातः स्मरणीय श्री श्रवण कुमार जी शास्त्री जी के चरणों में शत शत नमन